बहुचर्चित प्रेमी युगल की हत्या में नामजद चारों अभियुक्त हुए बरी

नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने देहरादून के चकराता क्षेत्र में 2014 में प्रेमी युगल की हत्या के बहुचर्चित मामले में निचली अदालत से फांसी की सजा पाए अभियुक्त को बरी कर दिया है। मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद बीती 29 अप्रैल को सुरक्षित रखा निर्णय हाईकोर्ट ने सोमवार को सुनाया। न्यायाधीश न्यायमूर्ति रविन्द्र मैठाणी और न्यायाधीश न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने अभिलेखों में पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध नहीं होने के कारण सभी चार अभियुक्तों को बरी करने के आदेश दिए हैं। बता दें कि इस मामले में शेष तीन अभियुक्तों को निचली अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

मामले के अनुसार, कोलकाता मूल के नई दिल्ली निवासी अभिजीत पाल और लाडो सराय, नई दिल्ली निवासी मोमिता दास 22 अक्तूबर 2014 को दिवाली की छुट्टियों में देहरादून जिले के चकराता घूमने आए थे। अगले दिन ये दोनों टाइगर फॉल घूमने के बाद रहस्यमय ढंग से लापता हो गए। मोमिता के परिवार वालों ने 23 अक्तूबर 2014 को उसे फोन लगाया लेकिन संपर्क नहीं हो पाया। इसके बाद उन्होंने नई दिल्ली के थाना लाडो सराय में मोमिता की गुमशुदगी दर्ज कराई। पुलिस जांच में मोमिता के मोबाइल फोन की आखिरी लोकेशन चकराता में मिली और ईएमआई नंबर के आधार पर उसके मोबाइल में राजू दास के नाम का सिम भी ट्रेस हो गया। इसके बाद दिल्ली पुलिस ने विकासनगर और चकराता पुलिस के साथ मिलकर राजू की तलाश शुरू की। पुलिस ने आखिरकार राजू को गिरफ्तार कर लिया। पूछताछ में राजू ने कबूला कि उसने गुड्डू, बबलू और कुंदन दास के साथ मिलकर नई दिल्ली के प्रेमी युगल की हत्या की है। आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने मोमिता का फोन, पर्स और कपड़े बरामद किए। शवों की खोजबीन के दौरान नौगांव से करीब दो किलोमीटर दूर यमुना नदी के किनारे पुलिस को अभिजीत का शव मिला। इसके 21 दिन बाद मोमिता का सड़ा-गला शव डामटा के पास यमुना के किनारे से बरामद हुआ।

इस मामले का ट्रायल अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश ढकरानी की अदालत में चला। 27 मार्च 2018 को एडीजे ढकरानी मोहम्मद सुल्तान की अदालत ने राजू दास को फांसी की सजा सुनाई थी। उसके बाकी तीन साथियों कुंदन, गुड्डू और बबलू को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। निचली अदालत के इस आदेश को अभियुक्तों ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद बीती 29 अप्रैल को अपना निर्णय सुरक्षित रखा था।